आज के इस राजनैतिक दौर में अलग-अलग जातियों के संगठनों की बाढ़ आ गई है। ये सभी संगठन अपनी जाति के तथाकथित कल्याण के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। लोगों पर जाति के उत्थान का जुनून इस कदर हावी है कि एक ही जाति के अंदर कई संगठन खड़े हो गए हैं। आलम यह है कि जातिगत संगठनों द्वारा आयोजित सम्मेलनों में एक-दूसरे पर कुर्सी और जूते-चप्पलों की बरसात भी हो जाती है। इस जूतम-पैजार में जाति के उत्थान का लक्ष्य तो एक भ्रम ही है, लेकिन वहां कुछ लोगों को अपना वर्चस्व दिखाने का मौका मिल जाता है। जाति की सेवा के नाम पर इस राजनीति में जाति के ठेकेदारों को जरूर थोड़ा-बहुत हासिल हो जाता है, लेकिन साधारण आदमी को कुछ नहीं मिलता।
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