बाड़मेर। वित्त, रक्षा एवं विदेश मंत्री के रूप में भाजपानीत एनडीए सरकार में महत्वपूर्ण भूमिकाओं में रह चुके भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंतसिंह ने गुरूवार को "पत्रिका" से देश के वर्तमान हालात, अर्थव्यवस्था, विदेश नीति एवं राजनीति समेत कई मुद्दों पर खुलकर बातचीत की। एक दिवसीय दौरे पर बाड़मेर आए जसवंत से हुई हमारे संवाददाता पवन जोशी की इस विशेष बातचीत के प्रमुख अंश।
पत्रिका- आयकर मुक्त भारत या कर ढांचे में व्यापक बदलाव की बात कही जा रही है। एक अर्थशास्त्री व पूर्व वित्तमंत्री होने के नाते क्या सोचते हैं?
जसवंत- इस मुद्दे पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पार्टी के विचार से अवगत करवा दिया है। निश्चय ही बदलाव की जरूरत है लेकिन इस पर पूरी चर्चा होनी चाहिए। चर्चा से आए नतीजों के बिना यह परिकल्पना पूरी नहीं हो सकती।
पत्रिका- वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने हाल ही में भारत को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था तीस साल में बनाने की बात कही, क्या आप भी मानते हैं कि विश्व में सर्वाधिक युवाओं वाले भारत को यह मुकाम हासिल होने में इतना समय लगेगा?
जसवंत- (मुस्कराते हुए) पी चिदम्बरम हमारे पुराने मित्र हैं। कई बार वे अतिशयोक्तिपूर्ण बाते करते हैं। ये उनका कौनसा गणित है? इसके साथ ही यह कथन उनकी सोच को भी दर्शाता है। तीस साल का समय बहुत होता है। देश के युवाओं का सही हाथों में नेतृत्व हो तो इससे कम समय में भारत को विश्व शक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता।
पत्रिका- दुनिया की आर्थिक प्रगति के मुकाबले भारत की विकास दर से आप संतुष्ट हैं?
जसवंत- मैं विकास दर को महत्वपूर्ण नहीं मानता। देश के हर नागरिक की संतुष्टि जरूरी है। महंगाई पर लगाम लगनी चाहिए। देश के नागरिक की आमदनी बढ़नी चाहिए। मेरा मानना हैकि "गृहिणी की टुंकिया में आना और गरीब के घर में दाना" जरूरी है। जिस कदर खाद्य सामग्री महंगी होती जा रही है वह चिन्ता का विषय है। इस पर नियन्त्रण के प्रयास होने चाहिएं।
पत्रिका-आपकी नजर में देश में उदारीकरण का ट्रेक किस तरह का होना चाहिए? वर्तमान नीतियों पर आप क्या राय रखते हैं?
जसवंत- निजीकरण और उदारीकरण की बातों में मैं नहीं फंसता। जीडीपी की जगह देश में संतुष्टि ज्यादा होनी चाहिए, यानी "जीएचपी" विकास का पैमाना होना चाहिए। एच माने हैप्पीनेस, खुशहाली। एक बार नेपाल में इस सम्बंध में बात हुई थी। भूटान में इस बात को लागू किया गया। आज वह विश्व में पहला खुशहाल देश है।
पत्रिका- क्या भारत-पाक की संयुक्त अर्थव्यवस्था का कंसेप्ट कभी अस्तित्व में आ सकता है? अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ के रूप में आपका क्या विचार है?
जसवंत- (आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता के भाव के साथ सकारात्मक संकेत में संभावना जताते हुए) पाकिस्तान के वर्तमान हालात चिन्ताजनक हंै। वह देश खुद कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। पाक में इन समस्याओं के समाधान के लिए समझाना जरूरी है। इसको लेकर पाक स्वयं नहीं मानेगा। इन समस्याओं के समाधान के बाद दोनों देशों के बीच बैठक होनी चाहिए। सभी लोगों को इसमे शामिल करके इस दिशा में (संयुक्त अर्थव्यवस्था का कंसेप्ट पर) आगे बढ़ा जा सकता है।
पत्रिका- हाल ही में लोकसभा एवं यूपी और जम्मू कश्मीर विधानसभाओं में जो घटनाएं हुई हंै। भारतीय लोकतंत्र नैतिक रूप से आज जिस मुहाने पर आ पहुंचा है। एक चिंतक के नाते आप क्या सोचते हैं?
जसवंत- इसको लोकतंत्र नहीं कहते। यह लोकतंत्र की दुर्गति है। नेतृत्व के अभाव में यह घटनाएं हो रही हैं और लोकतंत्र के लिए बेहद घातक हैं।
पत्रिका- आयकर मुक्त भारत या कर ढांचे में व्यापक बदलाव की बात कही जा रही है। एक अर्थशास्त्री व पूर्व वित्तमंत्री होने के नाते क्या सोचते हैं?
जसवंत- इस मुद्दे पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पार्टी के विचार से अवगत करवा दिया है। निश्चय ही बदलाव की जरूरत है लेकिन इस पर पूरी चर्चा होनी चाहिए। चर्चा से आए नतीजों के बिना यह परिकल्पना पूरी नहीं हो सकती।
पत्रिका- वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने हाल ही में भारत को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था तीस साल में बनाने की बात कही, क्या आप भी मानते हैं कि विश्व में सर्वाधिक युवाओं वाले भारत को यह मुकाम हासिल होने में इतना समय लगेगा?
जसवंत- (मुस्कराते हुए) पी चिदम्बरम हमारे पुराने मित्र हैं। कई बार वे अतिशयोक्तिपूर्ण बाते करते हैं। ये उनका कौनसा गणित है? इसके साथ ही यह कथन उनकी सोच को भी दर्शाता है। तीस साल का समय बहुत होता है। देश के युवाओं का सही हाथों में नेतृत्व हो तो इससे कम समय में भारत को विश्व शक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता।
पत्रिका- दुनिया की आर्थिक प्रगति के मुकाबले भारत की विकास दर से आप संतुष्ट हैं?
जसवंत- मैं विकास दर को महत्वपूर्ण नहीं मानता। देश के हर नागरिक की संतुष्टि जरूरी है। महंगाई पर लगाम लगनी चाहिए। देश के नागरिक की आमदनी बढ़नी चाहिए। मेरा मानना हैकि "गृहिणी की टुंकिया में आना और गरीब के घर में दाना" जरूरी है। जिस कदर खाद्य सामग्री महंगी होती जा रही है वह चिन्ता का विषय है। इस पर नियन्त्रण के प्रयास होने चाहिएं।
पत्रिका-आपकी नजर में देश में उदारीकरण का ट्रेक किस तरह का होना चाहिए? वर्तमान नीतियों पर आप क्या राय रखते हैं?
जसवंत- निजीकरण और उदारीकरण की बातों में मैं नहीं फंसता। जीडीपी की जगह देश में संतुष्टि ज्यादा होनी चाहिए, यानी "जीएचपी" विकास का पैमाना होना चाहिए। एच माने हैप्पीनेस, खुशहाली। एक बार नेपाल में इस सम्बंध में बात हुई थी। भूटान में इस बात को लागू किया गया। आज वह विश्व में पहला खुशहाल देश है।
पत्रिका- क्या भारत-पाक की संयुक्त अर्थव्यवस्था का कंसेप्ट कभी अस्तित्व में आ सकता है? अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ के रूप में आपका क्या विचार है?
जसवंत- (आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता के भाव के साथ सकारात्मक संकेत में संभावना जताते हुए) पाकिस्तान के वर्तमान हालात चिन्ताजनक हंै। वह देश खुद कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। पाक में इन समस्याओं के समाधान के लिए समझाना जरूरी है। इसको लेकर पाक स्वयं नहीं मानेगा। इन समस्याओं के समाधान के बाद दोनों देशों के बीच बैठक होनी चाहिए। सभी लोगों को इसमे शामिल करके इस दिशा में (संयुक्त अर्थव्यवस्था का कंसेप्ट पर) आगे बढ़ा जा सकता है।
पत्रिका- हाल ही में लोकसभा एवं यूपी और जम्मू कश्मीर विधानसभाओं में जो घटनाएं हुई हंै। भारतीय लोकतंत्र नैतिक रूप से आज जिस मुहाने पर आ पहुंचा है। एक चिंतक के नाते आप क्या सोचते हैं?
जसवंत- इसको लोकतंत्र नहीं कहते। यह लोकतंत्र की दुर्गति है। नेतृत्व के अभाव में यह घटनाएं हो रही हैं और लोकतंत्र के लिए बेहद घातक हैं।
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